हां, मैंने गर्भाशय निकलवाया और इसमें छिपाने जैसा कुछ नहीं है
अनुष्का शंकर
अब मेरे पास यूट्रस (गर्भाशय) नहीं है। मेरी दो-दो सर्जरियां हुईं – एक स्त्रीरोग संबंधी कैंसर विशेषज्ञ ने मेरे बड़े फायब्रायडों के कारण हिस्टेरेक्टोमी (सर्जरी से गर्भाशय निकालना) किया जिनकी वजह से मेरा यूट्रस छह महीने की गर्भवती महिला जितना बड़ा हो गया था और एक शानदार सर्जन ने मेरे पेट से कई और ट्यूमर हटाए (यह जानकर मैंने चैन की सांस ली कि वे घातक नहीं थे)। एक ट्यूमर मेरी मांसपेशियों में से निकलकर मेरे पेट से उभरा हुआ साफ दिखाई दे रहा था। ये कुल मिलाकर 13 ट्यूमर थे।
कुछ महीने पहले जब मुझे पता चला कि मेरा यूट्रस निकाला जाना जरूरी है तो मैं कुछ समय के लिए डिप्रेशन में चली गई थी। इस खबर ने मुझे तरह-तरह की शंकाओं से भर दिया,अपने स्त्रीत्वको लेकर, बाद में और बच्चे पैदा करने की इच्छा की संभावना, सर्जरी के दौरान मरने और अपने बच्चों को मां विहीन छोड़ जाने के डर, मेरी सेक्स लाइफ पर उसके संभावित असर को लेकर, और भी बहुत कुछ। मैंने अपने दोस्तों और परिवार वालों को इस बारे में बताया और मुझे यह जानकर धक्का लगा कि कितनी सारी महिलाएं इस सर्जरी से गुजर चुकी थीं, जबकि मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
मैंने सोचा कि अगर यह सर्जरी इतनी आम है, तो इसके बारे में ज्यादा बात क्यों नहीं होती। मेरे पूछने पर एक स्त्री ने जवाब दिया, ‘हम हर जगह तो अपने नारी अंगों को दिखाते नहीं फिर सकते, है न?’
मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो अफसोस करती हूं, जब मैं छोटी थी और जिन भी लड़कियों को जानती थी, हमसे उम्मीद की जाती थी कि हम चुप रह कर सब कुछ सहें। मैंने हमेशा खुद को आराम से अधिकांश विचारों और अनुभवों को साझा करने वाली लड़की के रूप में देखा। फिर भी मुड़ कर देखने पर मुझे एहसास होता है कि मैंने इतने सालों से सेक्सुअल हेल्थ को लेकर अपनी भीतरी शर्मिंदगी और शर्म को कभी चुनौती नहीं दी, खासकर पीरियड्स को लेकर।
मुझे ग्यारह साल में ही पीडियड्स हो गए थे। किशोरावस्था का आधा जीवन मासिक स्राव में बीता : हर 20-25 दिन पर 10 दिन लगातार। डॉक्टरों का एकमात्र सुझाव गर्भनिरोधक गोलियां था, जिन्होंने मेरे दर्दनाक माइग्रेन को बदतर बना दिया। भयानक क्रैंप्स मुझे दर्द से फर्श पर लोटने पर मजबूर कर देते।
26 की उम्र में मुझे अपने यूट्रस में खरबूजे के आकार के फायब्रॉयड का पता चला। कुशल डॉक्टरों ने मायोमेक्टॉमी (गर्भाशय से फायब्रॉयड को निकालने की सर्जरी) से मेरे यूट्रस को सुरक्षित रखते हुए फायब्रॉयड को निकाल दिया, जिसके कारण मैं बाद के सालों में अपने दो सुंदर बच्चों को जन्म दे सकी।
मेरा पहला सीजेरियन इमरजेंसी में हुआ क्योंकि गर्भाशय के फटने का खतरा था। उसके तुरंत बाद चीरे की जगह मुझे बहुत बुरा इंफेक्शन हो गया, साथ ही मुझे जबर्दस्त खून की कमी हो गई। मुझे हर दिन अस्पताल जाकर अपने चीरे को खुलवाकर नर्स से इंफेक्शन को निकलवाना पड़ता। मैं इतनी कमज़ोर थी कि मेरे परिवारवाले नन्हें ज़ुबिन को मेरे बदन पर रखते थे, तब मैं उसे दूध पिला पाती थी। इसके बाद कई महीने मैं डिप्रेशन में रहते हुए टूर करते हुए एक अलबम निकालने की कोशिश कर रही थी और इस बीच रात को ज्यादा से ज्यादा तीन घंटे सोते हुए एक भूखे बच्चे को लगातार दूध भी पिलाती रही।
जब मोहन मेरे पेट में था तो मैं इतनी बीमार थी कि मुझे ऐसा लगता था कि कोई चीज़ मुझे भीतर से खा रही है और मेरे माइग्रेन का दर्द और निरंतरता भी बढ़ गई।
हाल में लंबे समय तक बहुत तनाव, लगातार ब्लीडिंग, कमरदर्द और माइग्रेन रहने के बाद मुझे पता चला कि मुझे फिर से कई सारे बड़े फायब्रॉयड हो गए हैं। इस बार हमने हिस्टेरेक्टॉमी को चुना।
मैं अब घर पर स्वास्थ्य लाभ कर रही हूं। मैं खुशकिस्मत हूं कि मेरे पास शानदार सपोर्ट है, मैं सलाह या दया नहीं मांग रही। मैं जानती हूं कि मेरी कहानी कोई इकलौती नहीं है और महिलाएं रोज़ मुझसे कहीं ज्यादा पीड़ा झेलती हैं। मगर मुझे लगता है कि कुछ महीने पहले सर्जरी की जरूरत के बारे में लोगों से बात न करना ठीक नहीं था। बचपन से मेरे दिमाग में यह भरा गया कि प्रजनन संबंधी मुद्दों पर हम महिलाओं को रोग के लक्षणों को छिपाते हुए चुपचाप सहना चाहिए। मैं अब ऐसा नहीं करना चाहती। सर्जरी से मेरा गर्भाशय हटा दिया गया है और पेट के अतिरिक्त ट्यूमरों को भी।
और इसमें छिपाने जैसा कुछ भी नहीं है।
(मशहूर सितार वादक अनुष्का शंकर के ट्विटर पर डाले गए आलेख का हिंदी अनुवाद आम महिलाओं की जागरूकता के लिए साभार प्रकाशित)
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